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Showing posts from October, 2017

आम आदमी

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सुबह सुबह निकले जो घर से, सोच में दिन का हाल क्या होगा, काम भी होगा या होगा सनाटा, तलाश में ख़ुशी की खुद को रोका, वक्त संभाले न संभले जिससे, ये आम आदमी है कभी जिसका ज़िकर न होता  कभी है चिंता घर परिवार की, कभी है चिंता बदलते संसार की, अमृत समझ हर ज़हर है पीता, दौलत के भूखे रिवाज़ों मैं जीता, दुश्मन को दोस्त समझ के चल दे, ये आम आदमी है कभी जिसका ज़िकर न होता खिलौना है जिस सरकार के वास्ते, मुश्किल हैं मुर्दा परस्तों के रस्ते, हक़्क़ न कोई उसके अभिमान का होता, सब कुछ सेहन कर अकेले में रोता, मौत की कीमत न जाने कोई इसकी,  ये आम आदमी है कभी जिसका ज़िकर न होता  क़रीब से देखा ज़िन्दगी को जिसने, अजीब हैं तमाम ये चेहरे कितने, सरे ख्वाब जो उसके शबाब जो उसके, मिट चले फिर आदम से, सवालों के न जवाब हैं जिसके, ये आम आदमी है कभी जिसका ज़िकर न होता  धन्यवाद गौरव सचदेवा

I have learned...

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I've learned- that you cannot make someone love you. All you can do is be someone who can be loved. The rest is up to them. I've learned- that no matter how much I care, some people just don't care back. I've learned- that it takes years to build up trust, and only seconds to destroy it. I've learned- that no matter how good a friend is, they're going to hurt you every once in a while and you must forgive them for that. I've learned- that it's not what you have in your life but you have in your life that counts. I've learned- that you should never ruin  an apology with an excuse. I've learned- that you can get charm for about fifteen minutes. After that, you'd better know something. I've learned- that you shouldn't compare yourself to the best others can do. I've learned- that you can do something in an instant that will give you heartache for life. I've learned- that it's taking me a lo

मेरी कहानी

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ख्वाब हैं ऊँचे, सोच है ऊँची, छुपा के सब से रखता हूँ मैं गुमनाम हूँ थोड़ा, मेहमान हूँ तेरा, ये बोल खुदा से कहता हूँ मैं वक़त है ऐसा, बदलता है पैसा, खुद को ज़मीन पे रखता हूँ मैं जो रेह्ते करीब, हैं दिल के गरीब, झूठ को सच समझता हूँ मैं नादान हूँ थोड़ा,बचपन से जुड़ा, वफ़ा की उम्मीद रखता हूँ मैं खिलोनो की बस्ती, मौत है सस्ती, प्यार नाम के खेल से डरता हूँ मैं दुनिया का व्यापार, है जिस्म का बाजार, इस मंज़र से रोज़ गुजरता हूँ मैं मोहब्बत है ऐसी,काँटों के जैसी' निगाहों की उलझन से बचता हूँ मैं लौटा हर बार,साहिल के पार, खुद की वीरानी सुनता हूँ मैं वेह्शत में बहता, आरज़ू है लेकिन, मुश्किलों को शाद से सहता हूँ मैं धन्यवाद गौरव सचदेवा